प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य की पहचान उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वविख्यात गणितज्ञो और सांख्यिकीविदों में है न कि तथाकथित फर्जी कृषि अर्थशास्त्री कहलाने के फेरहिस्त में सक्रिय डॉ. साकेत कुशवाहा जैसे संघी पिट्ठू दलालों, रिश्वतखोरों और भ्रष्टाचारियों में है।



गौरतलब है कि वर्तमान में भी उच्च शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उपलब्धि हासिल करना विशेषकर पिछड़े वर्ग के शिक्षित लोगों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। यही मुख्य कारण है कि देश में 85 फीसदी आबादी वाले पिछड़े वर्ग के कुछेक गिनेचुने लोग ही उच्च शिक्षा और गुणवत्तापूर्ण शोध के क्षेत्र में अग्रणी हो सके हैं। जैसा कि आम तौर पर माना जाता है कि किसी व्यक्ति को सफलता कठिन परिश्रम और लगन से हासिल होती है या फिर विरासत अथवा सियासत के दूसरे विकल्पों के जरिए मिलती है। फिलहाल, विरासत और सियासत के जरिए उपलब्धि हासिल करने वाले सफल लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कहीं बहुत ज्यादा होती है। जबकि वहीं ईमानदारी, लगन और कठिन परिश्रम से उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वाले लोगों की संख्या नगण्य के बराबर ही होती है क्योंकि ऎसे लोगों के सफलता में बाधक, घातक और विदूषक की अग्रणी भूमिका निभाने वालों में मुख्य रूप से विरासत या सियासत से प्राप्त सफल लोग ही होते हैं। इस संदर्भ में कुछ हद तक वस्तुस्थिति को सहजता से समझने के लिए उप्र के लखनऊ निवासी प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य और वाराणसी निवासी डॉ. साकेत कुशवाहा के कुछेक उपलब्धियों, गतिविधियों, मतभेदों और टकरावों का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है। 
प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ. विश्व नाथ मौर्य सदैव मेधावी छात्र के रूप में स्कूल स्तर से लेकर तहसील और जिला स्तर पर छात्रवृत्ति परीक्षा और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करके भिन्न-भिन्न छोटे-बड़े पुरस्कार जीतकर अपने विद्यार्थी जीवन के शुरुआती दौर में अपनी पहचान बनाया। उन्होने 1990 के दशक में डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति प्रो. एस. एन. सिंह के निर्देशन में विज्ञान के कठिनतम विषय गणित एवं सांख्यिकी में एम.एस-सी और पी-एच.डी. किया और उसके उपरांत प्रो. एस. एन. सिंह के समकालीन पूर्ववर्ती कुलपति रह चुके विश्वविख्यात गणित के प्रोफेसर डॉ. राम बिलास मिश्र के साथ देश - विदेश के कई प्रतिष्ठित जर्नल में भारी संख्या में उत्कृष्ट शोधपत्रों का प्रकाशन किया। उन्होने कैलिफोर्निया (यूएसए) के न्यूपोर्ट यूनिवर्सिटी से अपने बीएससी और एमएससी डिग्रियों की भाँति कम्पूटर सांइस में स्पेशलाईजेशन के साथ एमबीए भी प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण किया और 2013 में उनकी डी.एस-सी थेसिस भी फिजी विश्वविद्यालय फिजी में गणित एवं सांख्यिकी के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहते हुए जर्मनी के स्कॉलर्स प्रेस इंटरनेशनल पब्लिकेशन्स में प्रकाशित किया गया। मई - 2015 में कॉपरस्टोन विश्वविद्यालय, जाम्बिया (साउथ अफ्रीका) के साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एवं डीन के पद की नियुक्ति के पहले सन् 2009 में डॉ. विश्व नाथ मौर्य को एकेटीयू लखनऊ (उ.प्र. प्राविधिक विश्वविद्यालय) और राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा से संबद्ध तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रिंसिपल, डायरेक्टर भी नियुक्त किया गया और उसके पूर्व उन्हें छत्रपति साहूजी कानपुर विश्वविद्यालय एवं उप्र प्राविधिक विश्वविद्यालय लखनऊ के केंद्रीय मूल्यांकन का कई बार प्रधान परीक्षक भी नियुक्त किया गया। इस प्रकार प्रो. मौर्य ने देश - विदेश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, डीन और डायरेक्टर के रूप में करीब 20 वर्ष से अधिक सेवा किया है और विश्व के यूएसए, फ्रांस, जर्मनी, जापान, न्यूजीलैंड, इटली, मलेशिया, आस्ट्रिया, अल्जीरिया, नाइजीरिया और भारत समेत कई देशों के प्रतिष्ठित जर्नल में में उनके सैकड़ों उत्कृष्ट शोधपत्र, लेख और पुस्तकें प्रकाशित किए जा चुके हैं। 
शिक्षा जगत एवं शोध के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य (Dr. Vishwa Nath Maurya) को देश - विदेश के भिन्न-भिन्न संस्थानों से उनके उत्कृष्ट शोधकार्यों और उल्लेखनीय शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए भारत गौरव, राष्ट्रीय शिक्षा रत्न, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक्सीलेंस अवार्ड, कोहिनूर पर्सनालिटीज ऑफ एशिया अवार्ड, एशियन - अमेरिकन हूज हू अचीवमेंट, इन्टीलेक्टुअल पर्सनालिटीज ऑफ द ईयर, लाइफटाईम इंटरनेशनल अचीवमेंट अवार्ड समेत कई दर्जनों पुरस्‍कारों से सम्मानित किया गया है। इसीलिए प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य (Prof. Vishwa Nath Maurya) की पहचान विश्वविख्यात गणितज्ञो एवं सांख्यिकीविदों में की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि प्रो. मौर्य को सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में भी एक प्रखर बुद्धिजीवी के रूप में विशेषकर धार्मिक अंधविश्वास, पाखंडवाद, जातिवाद और भ्रस्टाचार के खिलाफ उनके मुखर प्रतिक्रियाओं और गतिविधियों के लिए जाना जाता है। धांधली, रिश्वतखोरी और भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों में प्रो. विश्व नाथ मौर्य की सदैव अग्रणी भूमिका रही है और अब तक उन्होने भ्रष्टाचार से जुड़े कई मुद्दों को लेकर भ्रष्टाचार में संलिप्त अधिकारियों और शिक्षा माफियाओं के खिलाफ ज़ोर शोर के साथ गतिरोध व्यक्त करके शिकस्त दिया है जिसके कारण समाज में उनके सक्रिय विरोधियों की भी संख्या कम नहीं है जिसमें राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का बतौर कुलपति भ्रष्टाचार का आरोपी डॉ. साकेत कुशवाहा भी उनका एक प्रबल विरोधी है जिसका संक्षिप्त ब्यौरा आगे उद्धृत किया गया है। 
उक्त क्रम में अब इसके बाद विगत पाँच वर्षों से सीमांत धांधली, रिश्वतखोरी और भ्रस्टाचार में संलिप्त वाराणसी निवासी डॉ. साकेत कुशवाहा (Dr. Saket Kushwaha) का संक्षिप्त चर्चा करना प्रासंगिक होगा जिसने 47 - 48 फीसदी अंकों के साथ इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण किया और विरासत में अपने संघी बाप सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा (Surendra Singh Kushwaha) की मदद से बीएचयू से कृषि में पीएचडी करके लोकल जर्नल में मात्र 10 - 12 प्रकाशित शोधपत्रों के कोरम के सहारे ही 2006 में बीएचयू में प्रोफेसर नियुक्त कर लिया गया।दोनों बाप - पूत के संघी दलाली और छद्म सियासत के जरिए दोनों को एक से अधिक विश्वविद्यालयों में कुलपति बनने का मौका मिलने से भरपूर धांधली और रिश्वतखोरी से करोड़ों रुपये हथियाने का बेजोड़ मौका मिला और कालांतर में वही संघी पिट्ठू दलाल भ्रष्ट, धांधलेबाज और रिश्वतखोर प्रोफेसर साकेत कुशवाहा (Saket Kushwaha) शासन- प्रशासन की मिलीभगत से सफलता पाकर एक कृषि अर्थशास्त्री कहलाने के लिए कई लेख प्रकाशित किया जो वस्तुतः कृषि अर्थशास्त्री न होकर एक संघी दलाल है और फर्जी ढंग से कृषि अर्थशास्त्री के रूप में अपनी पहचान बढ़ाकर जनता की आंखों में झूल छोड़कर बहुत बड़े फायदे के फेरहिस्त में पूर्णतः सक्रिय है। 
बता दें कि विगत चार - पाँच वर्षों से संघी पिट्ठू दलाल के रूप में जाना-पहचाना जाने वाला साकेत कुशवाहा सीमांत भ्रष्टाचार, धांधली, रिश्वतखोरी और तानाशाही के आरोपों से न केवल घिरा हुआ है बल्कि बिहार के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं उससे संबद्ध कॉलेजों में हजारों छात्रों और कर्मचारियों के भिन्न-भिन्न संगठनों ने सन् 2014 से लेकर 2016 - 17 में जगह - जगह पर उसके अर्थी का जुलूस निकालकर कई बार पुतला भी फूँका था और उसको कुलपति पद छोड़कर वापस भाग जाने की जोर शोर से माँग भी किया था। विश्वविद्यालय में उसके वित्तीय एवं शैक्षणिक भ्रस्टाचार में लिप्त होने से सम्बंधित वीडियो भी वहाँ के शोधछात्र रह चुके सुधीर कुमार चौधरी का सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ किन्तु बेहद हैरत की बात है कि मिथिला विश्वविद्यालय के हजारों विरोधी प्रदर्शकारियों के द्वारा रोषपूर्ण विरोध और घोर निन्दा किए जाने के बावजूद भी बेशर्मी और नीचता की हदें पार करने वाला धूर्त साकेत कुशवाहा न ही अपना पद छोड़कर भागा और न ही भाजपा समर्थित नीतीश सरकार ने उसकी बर्खास्तगी ही किया था। उच्च शिक्षा क्षेत्र में बहुत कम ही ऎसा कोई प्रोफेसर चर्चा में आया होगा जिसका रिश्वतखोरी, धांधली, भ्रस्टाचार में संलिप्तता को लेकर इतना अधिक नैतिक पतन और घोर अपमान हुआ हो। भ्रष्टाचारी - रिश्वतखोर साकेत कुशवाहा का अर्थी जुलूस निकालकर बार-बार और जगह - जगह पर पुतला फूंका जाना ही इस तथ्य का सबसे बड़ा जीवंत प्रमाण है कि वह सीमांत अन्यायी, तानाशाही और भ्रष्टाचारी कुलपति रहा है जिसकी पहचान उसके तानाशाही कार्यशैली, संघी मानसिकता, कुटिल व्यवहार और अपवादित बयानों से ज्यादा की जाती है। उसके अनेकानेक अनियमितताओं, विसंगतियों और विकारों के चलते मिथिला विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध कॉलेजों के छात्रों और कर्मचारियों ने उसे कभी पसंद ही नहीं किया। इसीलिए उसके कार्यकाल में 2014 से लेकर 2017 तक उसके खिलाफ न केवल निरन्तर हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगाए गए बल्कि हजारों छात्रों और कर्मचारियों के द्वारा रोषपूर्ण प्रदर्शन के जरिए जगह - जगह उसकी अर्थी जुलूस भी निकालकर बार- बार पुतला फूँककर घोर निन्दा किया गया। ऎसे अत्यंत असामान्य परिस्थितियों में सरकार द्वारा नियमतः उसको बर्खास्त करके उसे जेल भेज देना चाहिए था किन्तु बेहद विडम्बनापूर्ण स्थिति बनी हुई है कि संघ - भाजपा सरकार में साकेत कुशवाहा जैसे तानाशाह, धांधलेबाज और रिश्वतखोर प्रोफेसर को पदोन्नति और प्रोत्साहित करके भ्रष्टतंत्र को निरंतर बढ़ावा मिलता रहा है जो गम्भीर चिंता और चिंतन का विषय बना हुआ है। 
सीमांत रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार में संलिप्तता के कारण प्रदर्शकारियों द्वारा निरंतर विरोध किए जाने से मिथिला विश्वविद्यालय में साकेत कुशवाहा को अगले टेन्योर के लिए एकसटेंशन तो नहीं मिल पाया किन्तु उसके संघी पिट्ठू दलाल होने का फायदा देने के लिए संघ - भाजपा सरकार ने उसको अक्टूबर 2018 में राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का पुनः कुलपति बनाकर उसे रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार के जरिए करोड़ों रुपये लूटने का मौका अवश्य दिया जो वास्तव में भाजपा सरकार का शर्मसार करने वाला नितांत अपवादित निर्णय रहा है। साकेत कुशवाहा जैसे सीमांत भ्रष्ट, रिश्वतखोर और धांधलेबाज प्रोफेसर को संघ - भाजपा सरकार ने न केवल उसको पुनः कूलपति बनाकर खुलेआम रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार के जरिए लूटने का मौका दिया बल्कि दक्षिण भारत के हिन्दी प्रचार सभा में प्रवक्ता रह चुकी उसके 62 वर्षीय सगी बहन निर्मला एस मौर्य (Nirmala S Maurya) को भी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति बना दिया। ऎसे में बहुत बड़ा सवाल उठता है कि जब साकेत कुशवाहा पहले से भिन्न-भिन्न भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा हुआ था तो उसके खिलाफ निष्पक्ष जाँच कराकर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गयी? 

फिजी विश्वविद्यालय फिजी के गणित एवं सांख्यिकी विभाग के विभागाध्यक्ष और अन्य कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, परीक्षा नियंत्रक, डीन और डायरेक्टर रह चुके विश्वविख्यात प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य (Dr. Vishwa Nath Maurya) ने ऎसे सीमांत भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर वीसी साकेत कुशवाहा (The most currupt VC Saket Kushwaha) के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने के बजाय भाजपा सरकार के द्वारा उल्टे उसे पुनः दूसरे विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए जाने पर घोर आपत्ति जताया है। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में हो रही धांधली, रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार का मुखर होकर विरोध करने वाले प्रखर बुद्धिजीवियों में शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सांख्यिकीविद् प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य (Dr. Vishwa Nath Maurya) ने इस पर भी गम्भीर आपत्ति जताते हुए कहा कि संघी- भाजपाई होने के कारण भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा की 62 वर्षीय सगी बहन को भी अभी हाल ही 2020 में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति बनाया गया जबकि उक्त क्रम में उल्लेखनीय है कि देश के किसी स्टेट यूनिवर्सिटी में 62 वर्ष से अधिक सेवा करने का नियम ही नहीं है। किंतु मोदी-योगी की सरकार में कुछ भी मुमकिन हो सकता है। यहाँ इसके कटाक्ष के लिए किसी दूसरे मिसाल देने के बजाय उसके संघी बाप सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा (Surendra Singh Kushwaha) का ही मिसाल पेश करना ज्यादा सटीक साबित होगा। बता दें कि साकेत कुशवाहा का बाप सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी का कुलपति नियुक्त किया गया था किन्तु 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के पहले ही उसकी उम्र 62 होने के कारण मायावती शासनकाल में उसे अपने पद से हटना पड़ा था जिसके कारण ही उसको वाराणसी के तत्कालीन कमिश्नर को कार्यवाहक कुलपति का चार्ज सौंपना पड़ा था। 

सांख्यिकीविद् प्रो. विश्व नाथ मौर्य (Prof. Vishwa Nath Maurya) ने विगत 22 वर्षों के व्यवहारिक अनुभव को शेयर करते हुए कहा कि बहुजन समाज के पिछड़े वर्ग का साकेत कुशवाहा (Saket Kushwaha) स्वयं और अपने बाप के संघी मानसिकता के चलते बहुजन समाज के किसी व्यक्ति विशेष के शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते विकास को कदापि हजम नहीं कर सकता है। उसका इतना अधिक नैतिक, सामाजिक और शैक्षिक पतन हो गया है कि वह और उसका परिवार अपने विकृत सोच-विचारधारा के कारण विशेषकर बहुजन समाज के किसी दूसरे व्यक्ति के शैक्षिक, बौद्धिक, सामाजिक या आर्थिक विकास को नहीं देखना चाहता है बल्कि उल्टे उसके विकास में बाधक, घातक और विदूषक बनकर शातिराना ढंग से अपनी नीचता और तुच्छता की हदें पार करके अधिकाधिक हानि पहुँचाने और टाँग खीचने के फेरहिस्त में रहता है जो उसके बेहद निंदनीय और घृणित मानसिकता की उपज है। साकेत कुशवाहा जैसे विकृत मानसिकता के लोगों को समाज से तिरस्कृत कर दिया जाना चाहिए क्योंकि वह भ्रष्टाचारी रिश्वत के हवस में मानव से दानव बनकर इस धरती पर बहुत बड़े विदूषक और विद्ध्वंषक के रूप में अभिशाप के समान बहुत बड़ा कलंक है और उसकी जितना भी निंदा की जाए वह कम ही है। प्रो. मौर्य ने कहा कि गनीमत हुआ कि साकेत कुशवाहा के तानाशाही रवैये, कुटिल व्यवहार, धांधली, रिश्वतखोरी और भ्रस्टाचार से क्षुब्ध और पीड़ित छात्रों एवं कर्मचारियों ने आक्रोश में आकर उसका अर्थी जुलूस निकालकर पुतला फूँककर ही रोषपूर्ण विरोध व्यक्त किया अन्यथा सीमांत आक्रोश की स्थिति में पहुँचकर छात्रों और कर्मचारियों के द्वारा वास्तव में उसका दाह संस्कार भी किया जा सकता था। यहाँ विचारणीय है कि ऎसी बेहद शर्मसार करने वाली घटनाओं से भी बेशर्म साकेत कुशवाहा (Saket Kushwaha) ने अपने कार्यशैली, सोच, विचार और व्यवहार में कुछ भी सुधार लाने का कभी कोई प्रयास ही नहीं किया जिससे कि ऎसी शर्मसार घटनाओं की पुनरावृत्ति उसके भविष्य में बार - बार न हो। यह भी एक मुख्य कारण रहा है कि शासन - प्रशासन की मिलीभगत से राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर में पुनः कुलपति बनकर साकेत कुशवाहा ने जुलाई 2019 के जरिए विज्ञापित रिक्त प्रोफेसर पदों के हो रही नियुक्ति में रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार की हदें पार कर दिया है और इसीलिए उसने यूजीसी के मानकों को ताख पर रखकर दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य (Dr. Vishwa Nath Maurya) जैसे विश्वविख्यात गणितज्ञ और सांख्यिकीविद् को भी रिश्वत न पाने के कारण अपने पद का दुरुपयोग करते हुए जीरो एपीआई स्कोर देकर अयोग्य ठहराने का कुत्सित प्रयास किया है जिसको लेकर साकेत कुशवाहा (Saket Kushwaha) का निरन्तर विरोध हो रहा है और राजीव गांधी विश्वविद्यालय की भी बहुत किरकिरी हो रही है। उक्त हाल के भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दे को लेकर प्रो. मौर्य ने आपत्ति जताते हुए रिश्वतखोर - भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी के लिए हाल ही में केन्द्र सरकार से मांग किया है किन्तु सरकार के खामोशी को देखते हुए ऎसा प्रतीत होता है कि उन्हें उचित न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करना पड़ेगा।
                    संवाददाता, प्रेमशंकर

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