जुब्बा सहनी पार्क स्थित आम्रपाली आडोटोरियम में उर्दू कोषांग मुजफ्फरपुर की ओर से एक दिवसीय फरोग-ए-उर्दू सेमिनार व मुशायरा का आयोजन किया गया।

 कार्यक्रम का उद्घाटन जिलाधिकारी मुजफ्फरपुर प्रणव कुमार के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता उर्दू कोषांग के प्रभारी पदाधिकारी मो फैयाज अख्तर एवं कार्यक्रम का संचालन उर्दू कोषांग के अनुवादक डॉक्टर 
मोतिउर्ररहमान अजीज ने किया ने किया।
 मौके पर जिलाधिकारी ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि---
*उर्दू किसी जाति विशेष/किसी कौम की भाषा नहीं है। मुंशी प्रेमचंद्र जैसे महान लेखक ने भी उर्दू में लिखा है। उन्होंने उर्दू की खूबियों का बयान करते हुए कहा कि"वह बोले तो हर लफ्ज़ से खुशबू आए ,ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आये। उन्होंने कहा कि उर्दू मोहब्बत की जुबान है। यह भाईचारे की संस्कृति को आगे बढ़ाती है। उर्दू हमें सलीका सिखाती है। यह तहजीब की भाषा है*।उन्होंने उर्दू के फ़रोग़ के लिए हर प्रकार की सहायता प्रदान करने की बात कही। वहीं कार्यक्रम में उपस्थित अपर समाहर्ता राजेश कुमार ने अपने संबोधन में उर्दू के जनक अमीर खुसरो को बताते हुए कहा कि यह वह भाषा है जिससे सूफी संतों ने अपने गोद में पाल पोस कर युवा किया और इसे आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि यह भाईचारे की भाषा और गंगा जमुना संस्कृति का परिचायक है।
 बैठक की अध्यक्षता कर रहा है उर्दू शाखा के प्रभारी अधिकारी मोहम्मद फैयाज अख्तर ने कहा कि उर्दू को जब तक आप अपने घर में जिंदा नहीं रखेंगे तब तक इस का विकास संभव नहीं है। कहा कि समय-समय पर ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
 डॉक्टर प्रोफेसर तौकीर आलम, डॉक्टर अबूजर कमलूद्दीन , कौमी असतीजह तंजीम के प्रदेश संयोजक मोहम्मद रफी, प्रोफ़ेसर खुर्शीद समी ,डॉक्टर प्रोफ़ेसर हामिद अली ख़ान, डॉक्टर प्रोफ़ेसर हसन राजा ,नूर आलम खान, जिला शिक्षा पदाधिकारी अब्दुल समद अंसारी,डॉक्टर मंसूर मासूम, तैयबा मासूम, सदफ फातमी और मोहम्मद अनस ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी।
 फरोग ए उर्दू कार्यक्रम के अवसर पर दूसरे सत्र में मुशायरे का भी आयोजन किया गया जिसका संचालन जमील अख्तर शफीक ने किया ।
अपर समाहर्ता राजेश कुमार ने भी मुशायरे में अपनी कविताओं को पढ़ा जिस पर उन्हें खूब वाहवाही मिली।
 अली अहम मंजर ने कहा कि ए जो शाएस्तगी का दरिया है ये भी उर्दू जुबां से उठा है।
मोहम्मद रफी ने शेर पढ़ी" मेरी जिंदगी कुदरत की एक निशानी मिली है, उम्र जो तो हुक्म आसमानी मिली है"
 वही पंकज कर्ण ने कहा कि "इसी गली से ओ कुछ लोग आते जाते थे, तमाम रिश्ते जो सलीके के साथ निभाते थे। 
डॉक्टर आरती कुमारी ने कहा कि "तुम्हें दुनिया की नजरों से बचाकर साथ रखना है मेरी चाहत का खत हो तुम्हें छुपाकर साथ रखना है"
 ।ताजीक अहमद गौहर ने कहा कि सड़क सीधी है लेकिन क्या करें ,हमे भटक जाने की आदत हो गई है।
 डॉक्टर ताहिरउद्दीन ताहिर ने कहा "मुझसे मिलते हैं अजनबी की तरह जिनको चाहा है जिंदगी की तरह"
एमआर चिश्ती ने तराना ए बिहार सुनाने के बाद अपनी ग़ज़ल "कितना प्यारा नाम है उर्दू कुदरत का ईनाम है उर्दू। वही एम आलम सिद्दकी ने कहा कि "झुक जाओ जरा चांद सितारों को उठाओ, फुटपाथ पर लेटे हुए बच्चों को उठाओ"। वही जलाल फरीदी ने शेर पढ़ी "तू ख्वाइशों का असीर हो जा, जमीर बेच और अमीर हो जा" 

इसके साथ ही महफूज अहमद आरिफ ने शायरी वक्त की जरूरत है और ए० हाशमी ने वक्त के हालात पर अपनी ग़ज़ल सुनाई।
कार्यक्रम के अंत में डॉ मोतिउर रहमान अजीज ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
                  संवाददाता, प्रेमशंकर

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