जीवन की सच्चाई से जुड़े कुछ विशेषांक - प्रो .विश्व नाथ मौर्य, कुलपति, सीआईडीवीयू यूएसए ।

किसी व्यक्ति की सफलता से उसके करीबियों, सगे संबंधियों इत्यादि को तभी कमोवेश खुशी होती है जब उन्हें उसके किसी विशेष सफलता/उपलब्धि से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कोई लाभ हो रहा होता है अन्यथा न चाहते हुए भी उनको खुशी के बजाय दुखी होने के लिए बाध्य होना पड़ता है। यह ब्रम्हांड के समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहे जाने वाले तथाकथित मनुष्य के अनेकानेक विकारों में उनके स्वाभाविक दुर्गुणों में से एक है। और, ऐसी स्थिति उनकी विकृत सोच , विचार और संकीर्ण मानसिकता के कारण ही उत्पन्न होती हैं। भारत में रहने वाले 99.99 फीसदी लोगों की मित्रता अथवा शत्रुता  दोनो ही किसी पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान  या चीन के लोगों से न होकर अपने परिवार, पाटीदार, और आस -पास मोहल्ले एवं शहर के लोगों से ही होती हैं। व्यक्ति के मित्रता और शत्रुता का दायरा उसके पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक एवं मानसिक स्तर पर निर्भर करता है। समाज के संकीर्ण विचारधारा के अधिकांश लोगों का दायरा उनके निजी परिवार, नात रिश्तेदार और कुछेक मित्रों तक सिमटा हुआ है क्योंकि उनके मानसिक सोच-विचार की संकीर्णता ही इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है  जिसका सीधा सम्बन्ध उनके परिवेश से जुड़ा होता है। ऐसे संकीर्ण सोच-विचार के लोगों के सफलता की सीमाएं भी पहले से ही निश्चित हो जाती हैं। यह पूर्णतः कटु सत्य है कि यदि व्यक्ति का दायरा बहुत ही सीमित है तो उसके सफलता का स्तर भी सीमित ही रहेगा। कलुषित समाज में ईष्र्या, द्वेष और प्रतिस्पर्धा की भावना इतना बढ़ गया है कि सामान्यतः कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के किसी सफलता से कोई सरोकार नहीं रखता है, भले ही उस व्यक्ति विशेष ने उसको पाने के लिए लाखो प्रयास और भिन्न भिन्न यत्न क्यों न किया हो। जबकि वहीं यदि मात्र 1000 रुपए की चोरी करके कोई चोर अपने किसी करीबी  मित्र को इसमें से एक - दो सौ रुपए ही दे देता है तो वह व्यक्ति भी लाभ पाने के कारण उसकी कमियों को भलीभांति जानते हुए भी कामियों की बुराई करने के बजाय उसके बचाव और समर्थन में झूठी प्रसंशा के पुल खड़ा करने में कोई कमी नही छोड़ता है। यही समाज के लोगों की वास्तविकता है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि समाज के किसी वर्ग का जब कोई व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में किसी भी यत्न से कुछ आगे बढ़ने लगता है तो उसके बाद अपने मान - सम्मान और यश -कीर्ति को बढ़ाने के लिए अपने घर, परिवार और करीबियों को भी आगे ले जाने की कोशिश करता है। किंतु यही सामान्य प्रक्रिया ही व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख दोनो का कारण बनता है। ऐसे में घर, परिवार और करीबियों में कई लोग लाभान्वित होकर आत्मनिर्भर और सक्षम होने की दशा में शुभ चिंतक होने के बजाय भस्मासुर की भूमिका निभाने लगते हैं और तब उस व्यक्ति को अवांक्षित विषम परिस्थितियों में प्रायश्चित करने और कष्ट सहने के लिए विवश होना पड़ता है कि आखिर में मदद स्वरूप ऐसा कार्य उसने क्यों किया जिससे उसे स्वयं को इतना अधिक कष्ट मिलने की स्थिति उत्पन्न हुई? मनुष्य प्रजाति के बहुभेषी /बहुरूपी और बहुभाषी एवं चाल -चरित्र को मैं  स्थिति - परिस्थिति वश अपने सरल स्वभाव और विज्ञान एवं गणित का विधार्थी होने के कारण समय पर भलीभांति नहीं समझ सका। मुझे अपने शैक्षणिक और शोध कार्यों से हटकर सामाजिक और राजनैतिक दांवपेंच से विगत 8-10 वर्ष पहले कोई भी रुचि ही नहीं थी किन्तु  समय के साथ जब घर, परिवार, समाज और संस्था के लोगों ने सीमांत राजनीति ओर कूटनीति के सहारे मुझे कई अवसरों पर विशेष हानि पहुंचाने की कोशिश किया और वे अपने इस मिशन में कुछ हद तक कामयाब भी हुए, इसके साथ ही विरोधियों की संख्या निरंतर बढ़ती गई तो मेरी बंद आंखे भी खुल गईं और मुझे पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक चुनौतियों से निपटने के लिए विशेष योजना के तहत सब कुछ परित्याग करते हुए उन गतिविधियों की ओर विशेष ध्यान देना पड़ा जिससे कि अनेकानेक प्रबल विरोधियों के हावी होने के बावजूद भी मेरी महत्वाकांक्षा साकार हो सके। मैने अपने घर, परिवार और समाज के प्रबल विरोधियों को तटस्थ पर रखते हुए केवल दूरस्थ उच्च शिक्षित और सक्षम लोगों से ही संपर्क पर बल दिया जिससे कि उनसे संभावित रूप से किसी भी दशा में शत्रुता होने पर भी कोई विशेष जोखिम न उठाना पड़े क्योंकि जब करीबी व्यक्ति दुश्मन हो जाता है तो वह तो प्रत्यक्ष या परीक्षा रूप से जानलेवा हमला करके प्राण के लिए भी जोखिम बन जाता है जैसा कि मेरे साथ भी कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं। अतेव इस मामले में दूर की दोस्ती और दुश्मनी दोनो ही अपेक्षाकृत श्रेयस्कर होती है।

 मेरे प्रारंभिक शिक्षा से लेकर अब तक के अब तक के जीवन काल में समाज के अनेकानेक धूर्तों, अवसरवादियों, धोखेबाजों, जातिवादियों और पाखंडियों से पाला पड़ा। जिसे लोग गुरु की संज्ञा देकर सम्मान करते हैं वे सभी गुरु भी मेरे साथ सीमांत धोखा, क्षल और कपट के साथ पेश आए और समय-समय पर हानि पहुंचाए । इसके बावजूद भी मैने सदैव एक नहीं अनेकानेक अवसरों पर अनेकानेक लोगों की यथासंभव सहयोग ही किया और अभी तक किसी व्यक्ति की लेग पुलिंग कभी नही किया जिनमें कुछेक व्यक्ति को छोड़कर अन्य सभी ने  मुझे केवल धोखा ही दिया। यहां सैकड़ों  अविस्मरणीय ओर सबक सिखाने वाले दृष्टांत और मिसाल को उद्धृत करना सहज और संभव नहीं है किंतु कुछेक शुरुआती दृष्टंतों से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में भिन्न-भिन्न किस किस्म के लोग कैसे -कैसे होते हैं?

प्राइमरी शिक्षा के दौरान पांचवी की बोर्ड परीक्षा में सरनाम गंज प्रा. स्कूल से करीब 12 किमी दूर स्थित श्रीगीनारी जू. हाई स्कूल में मुझे मेधावी छात्र होने के कारण अपना और एसडीआई की उपस्थिति में भी केशवानंद पांडेय, मेरे प्राइमरी शिक्षक और पड़ोसी की बेटी माया पांडेय का भी परीक्षा देना पड़ा और इससे भी ज्यादा दिलचस्प की बात यह है कि बोर्ड परीक्षा में मेरे द्वारा लिखी गयो दोनो उत्तर पुस्तिकाओं में  मेरे शातिर प्राइमरी शिक्षक केशवानंद पांडेय ने एस.डी.आई. से मिलीभगत करके अपनी बेटी माया पांडेय के 2 अंक बढ़वाकर परिणाम घोषित कराया जिससे कि वह परीक्षा केंद्र में प्रथम और में द्वितीय स्थान पर आया। जबकि कुछेक कारणों से उसकी बेटी माया पांडेय कक्षा 3 के बाद कभी स्कूल में पढ़ने ही नहीं गई। वस्तुतः मेरे साथ मेरे ही शातिर शिक्षक ने  द्रोणाचार्य और महान धनुर्धर एकलव्य के बीच हुए धोखा के घटनाक्रम को दोहराया गया । इसके बाद जू. हाई स्कूल श्रृंगीनारी में आठवीं की बोर्ड परीक्षा में एक मौलवी साहब शिक्षक ने भी अपनी बेटी की परीक्षा में मुझे बैठाकर अपनी बेटी को प्रथम श्रेणी में विशिष्ट योग्यता के साथ उत्तीर्ण कराया। और , मुझसे ऐसा निःशुल्क  लाभ उठाने वाले न केवल हरामजादे शिक्षक ही मिले अपितु रिश्तेदार और समाज के लोगों ने भी छात्रवृत्ति जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में मुझे विश्वास में लेकर भरपूर फायदा उठाया  एक बार एक रिश्तेदार के बेटे को छात्रवृत्ति दिलाने की परीक्षा में परीक्षा देने के करीब एक घंटा के बाद किसान इन्टर कॉलेज बभनान में एक बहुत ही विश्वसनीय व्यक्ति और बड़े भाई के सहपाठी के द्वारा मुझे पकड़ाया गया जो रईस खानदान और ऊंची पहुंच के होने के कारण वर्तमान में सीनियर आई.पी.एस. अधिकारी पुलिस कमिश्नर है। उसने मुझसे दोस्ती में परीक्षा खत्म हो जाने के बाद बाहर साथ में होकर पूछा कि आप यहां क्यों आए हुए हैं तो मैने उसको घणिष्ट दोस्ती के कारण सच्चाई को बता दिया किंतु एक तो वह चालाक ब्राह्मण और दूसरे प्रतिष्पर्धी व्यक्ति था, तीसरे उसका भी छोटा भाई उसी छात्रवृत्ति परीक्षा में अभ्यर्थी के रूप में परीक्षा दिया था और उन दोनों भाइयों को भलीभांति यकीन हो गया था कि यदि इस मामले का पर्दाफाश नहीं होता है तो उसका छोटा भाई भी छात्रवृत्ति परिक्षा में मेरिट लिस्ट में पास नहीं हो पायेगा। इस मुख्य आशंका के कारण उसने मुझे कॉलेज कैंपस में ही पर्दाफाश करके पकड़वा दिया किन्तु वहां के कई अध्यापक मुझे और मेरे बड़े भाइयों को पहले से जानते - मानते थे  और उसका एक बड़ा बाप मुझे जू. हाई स्कूल श्रृंगीनारी में संस्कृत पढ़ाता था और मेरे मेधावी होने के कारण मुझे बहुत मानता था जिससे मेरा बीच बचाव हो गया किन्तु मेरे द्वारा लिखी गई उत्तरपुस्तिका को निरस्त घोषित कर दिया गया। पूरे घटनाक्रम का खेल करीब दो घंटा से अधिक चला जिस इन्टर कॉलेज में उस ब्राह्मण लड़के का दूसरा बड़ा बाप भी हिंदी का प्रवक्ता था। अतेव उसने अपने भतीजे के समर्थन में कुछ ज्यादा अभिरुचि दिखाया। उसका छोटा भाई भी वर्तमान में इंटर कॉलेज में वरिष्ठ प्रवक्ता है और लखनऊ में ही रहता है। उसने मुझे कई बार संदेश देकर अपने घर बुलाने के लिए आग्रह किया किन्तु मैं न तो उसके पास कभी गया और न ही उसके बड़े भाई पुलिस कमिश्नर से ही कभी संपर्क किया। हालाकि संपर्क करने पर कुछ मामले में शायद वह कुछ मदद भी कर सकता है।  सैकड़ों दृष्टंतो में मात्र इन तीन मिसालों से ही स्पष्ट प्रमाणित हो जाता है कि दोस्ती और दुश्मनी दोनो ही स्वार्थ को लेकर ही उत्पन्न होती है। जब किसी रिश्ते के बीच स्वार्थ पराकाष्ठा पर पहुंच जाए तो रिश्ता चाहे गुरु -शिष्य, बाप-बेटे, पति -पत्नी, भाई- बहन और चाचा -भतीजा के बीच का हो किंतु सम्बंध मधुर नहीं रह जाता है। परंतु यह जानते हुए भी लोगों को एक दूसरे की सहायता जाने -अंजाने में करना ही पड़ता है। क्या माननीय पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुलायम सिंह यादव को यह पता था कि वह सहयोग करके जिस व्यक्ति को फर्श से अर्श पर पहुंचाए , वही  व्यक्ति उनके सगे बेटे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए दुश्मन की भूमिका निभाएगा?

जब मुझे भिन्न - भिन्न प्रयोगों के द्वारा स्पष्ट रूप से विश्वास हो गया कि मेरी प्रगति में तथाकथित अपने और पराए  दोनो में कोई भी व्यक्ति वास्तव में ईर्ष्या, द्वेष और प्रतिष्पर्ध के कारण शुभचिंतक या हितैषी नहीं है तो उसके बाद मुझे अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। यहां यह याद दिलाना बहुत जरूरी है कि वास्तव में यदि समाज में कोई व्यक्ति सहयोगी या शुभचिंतक होता तो निश्चित ही मैं सफलता के शिखर पर पहुंचकर अन्य लोगों की भी यथासंभव आवश्यकतानुसर सहयोग ही कर रहा होता। हालांकि समाज के जिन तथाकथित सक्षम लोगों ने मेरा सहयोग करने के बजाय प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से विरोध किया, वे भी न तो आर्थिक रूप से अग्रणी होकर कोई उद्योगपति बन गए और न ही शिक्षा अथवा राजनीति के क्षेत्र में भी उनकी अंधों मैं काना राजा बने रहने की गलत मंशा ही चरितार्थ हो पाई। और, न  ही अन्य किसी भी क्षेत्र में अग्रणी होकर देश - विदेश में यश- कीर्ति फैला सकने में कामयाब हुए। ध्यान रहे कि समय परिवर्तनशील है। कभी गाड़ी नाव पर तो कभी नाव गाड़ी पर होती है , समय के साथ दोनो तरह की परिस्थितियां सामने आती हैं। योगी -मोदी को पूरे प्रदेश और देश के सभी विरोधी दलों के नेताओं ने संयुक्त रूप से विफल करने की पूरी ताकत लगा लिया किंतु एक बार नहीं दूसरी बार भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सका । यहां तक कि उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक पायेगा। इसलिए मुझे भी विरोधियों से घबराने की कोई चिंता नहीं होती बल्कि विरोधियों के प्रतिरोध उत्पन्न करने पर मेरा साहस और मनोबल  बढ़कर आगे बढ़ने की क्षमता में और ज्यादा इजाफा हो जाता है।

अभी दुनिया में लोगों के साथ अनुभव लेने, चलने और सफलता के शिखर पर पहुंचने का वक्त खत्म नहीं हुआ है। आज मैं डंके के चोट पर दावे के साथ कहता हूं कि पिछड़े - दलित और विशेषकर मौर्य समाज में ही मुख्यतः आरक्षण और अवसरवाद का फायदा उठाकर कई आईपीएस /आईएएस ऑफिसर, प्रोफेसर, कुलपति, विधायक  सांसद और कैबिनेट मंत्री इत्यादि उत्पन्न हुए किंतु इतिहास इस बात का स्पष्ट साक्षी है कि मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा  इत्यादि सभी समुदाय से कोई व्यक्ति अभी तक किसी विदेशी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से किसी भी विषय में डी. लिट और डी. एस -सी. करने का सपना नहीं पूरा कर पाया । कुशेक लोग विरासत और सियासत से भागलपुर बिहार से महत्वहीन विषय से डी. लिट करके अंधों में काना राजा बनने की कहावत को कायम रखने की कोशिश किया था किंतु उनके भी सपने टूट गए और सभी रिकार्ड ध्वस्त हो गए। असाधारण स्थितियां और परिस्थितियां उत्पन्न होने की दशा में कई विशेष कारणों से मैंने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी चारों वर्णों में शिक्षित, प्रतिष्ठित और संपन्न घरानों में देश के भिन्न  - भिन्न बड़े शहरों में शादी भी किया और एक, दो, तीन विषयों में ही नहीं बल्कि साइंस, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के कई महत्वपूर्ण और क्लिष्टतम विषयों में कई बार डी. एस - सी .और  डी.लिट. की उपाधी से में देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों के चांसलर और वाइस-चांसलर द्वारा नवाजा  गया और इतना ही नहीं अपितु अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का एक्जीक्यूटिव वाइस चांसलर के विशेषाधिकार के अंतर्गत किसी भी उपयुक्त अभ्यर्थी को विश्व के इस सर्वोच्च उपाधि से अलंकृत करने की क्षमता भी रखता हूं। समाज के अधिकांश लोगों की तरह मुझे अकूत धन कमाने या बटोरने  की चाहत कभी नहीं थी,  न ही वर्तमान में है और न हो भविष्य में होगी। मेरी सबसे बड़ी चाहत स्थानीय स्तर पर नहीं बल्कि वैश्विक पटल पर कमोवेश यश - कीर्ति फैलाने की थी, वह मेरे जीवन में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में साकार हुआ और आगे भी इस दिशा में अग्रसर होते रहेंगे। जीवन में उतार -चढाव से मुझे कोई ज्यादा घबराहट या चिंता नहीं होती हैं क्योंकि मैंने तो शून्य से ही शुरुआत किया था।  स्वाभिमान का धनी व्यक्ति होने की कारण मैं किसी क्षणिक लाभ के लिए अन्य लोगों की तरह किसी राजनेता,अभिनेता और आरक्षण से बने किसी अधिकारी की चाटुकारिता कदापि नहीं कर सकता हूं। अभी तक मुझे विरासत में अथवा सियासत से रंचमात्र भी लाभ नहीं हुआ और न ही मैं किसी छद्म और दिखावे की राजनीति में कोई विश्वास करता हुं। वैसे तो छद्म राजनीति और भ्रष्टाचार के दौर में गुणवत्ता का महत्व बहुत कम हो गया है और यदि गुणवत्ता का कुछ महत्व रह भी गया है तो वह सवर्ण समाज में है, पिछड़े दलित समाज के लोग आरक्षण का फायदा उठाकर छद्म और विकृत राजनीति करके विघटनकारी स्थितियों को उत्पन्न करके केवल निजी स्वार्थ सिद्ध करने में दिनरत लगे हुए हैं। हाथी की तरह उनके भी दांत खाने और दिखाने के लिए अलग -अलग हैं।   पिछड़े और दलित समाज में अधिकांश लोग इतना अधिक शातिर हो गए हैं कि वे केवल दूसरे को मोहरा बनाकर केवल नाजायज फायदा लेने के फेरहिस्त में ही रहते हैं। उनके लिए सामाजिक सुधार नहीं बल्कि निजी स्वार्थसिद्धि ही सर्वोपरि है। स्वयं के सतत प्रयास और परिश्रम से शिक्षा जगत में शून्य से शिखर पर  पहुंचकर मुझे अपने पर अपर गर्व होता है कि मैं इस संसार का सबसे अधिक सफल व्यक्ति हूं। यहां तक कि घर, परिवार और समाज के कई दुष्ट आत्माओं ने मेरे मनोबल को भी आघात पहुंचा कर तोड़ने की कोशिश किया किन्तु उनकी सभी चाल मेरे बुद्धि  -विवेक के चलते निष्प्रभावी ही रहा। मौर्य इतिहास में मौर्य वंशज से सर्वाधिक उच्च शिक्षित होने, दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित अवार्ड पाने एवं अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के फर्स्ट एक्जीक्यूटिव वाइस चांसलर होने का श्रेय मुझे परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोगों से नहीं मिला है बल्कि वास्तव में इसके पीछे विगत कई वर्ष के दौरान मेरा कठिन परिश्रम, घोर त्याग और तपस्या छिपा हुआ है। और, यदि किसी भी व्यक्ति को ये सभी मुकाम हासिल करना बहुत आसान ही लगता हो तो केवल जुबान से कहकर ही नहीं बल्कि इसे वास्तव में साकार करके दिखाए। मैं अपने सजातीय और विजातीय दोनो श्रेणी के विरोधियों को अस्त्र -शस्त्र से नहीं और न ही धर्मशास्त्र और पाखंड से बल्कि विज्ञान शास्त्र के विशेषज्ञता से परास्त करने के विकल्प को ही श्रेयस्कर मानता हूं। यथार्थ जीवन से जुड़े हजारों लेख लिखने की मेरी प्रबल इच्छा होती हैं किंतु उससे समाज में मेरे हजारों विरोधियों को और अधिक सजग, सचेत और सक्रिय होने का अवसर मिलेगा जो मेरे लिए ही घातक सिद्ध होगा। अतेव ऐसे प्रतिकूल परिस्थितियों में अधिकाधिक चुप रहना ही शांति सौहार्द और सफलता के लिए आवश्यक है। समाज के पद्दलित और कीड़ों मकोड़ों के मान  -सम्मान अथवा तिरस्कार करने से  किसी व्यक्ति के जीवन शैली पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। ध्यान रहे कि जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। जहां किसी व्यक्ति विशेष के समर्थक, प्रसंशक और शुभचिंतक देश -विदेश के हजारों प्रतिष्ठित शिक्षाविद् और उच्च अधिकारी गण हों वहां उस व्यक्ति विशेष के उपेक्षणीय और नगण्य आलोचक क्या प्रभाव डाल पाएंगे ?  विरोधियों को याद दिलाने के लिए दिनकर की ये दो पंक्तियां पर्याप्त हैं - सौभाग्य, न सब दिन सोता  है;  देखें, आगे क्या होता है?

                                 टीम :- मौर्य ध्वज एक्सप्रेस

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